लेखनी कहानी -14-Aug-2022 आजाद शाम
गांव में बहुत तेज हलचल हो रही थी । चारों तरफ कानाफूंसियों का दौर चल रहा था । आंखों ही आंखों में इशारे हो रहे थे । हर होठ पर एक मुस्कान थी । लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । तीन साल का वक्त कोई कम होता है क्या ? लेकिन कभी कोरोना बैरी तो कभी कुछ और । ये "दंगल" तो खिंचता ही जा रहा था ।
आखिर वह बेला भी आ गई जब इस "दंगल" की औपचारिक तिथि घोषित हो गई । "खैरातियों" ने कसीदे पढने शुरु कर दिये । वैसे भी जनता को पता था कि "दंगल" में उतरने वाला सूरमा कोई "ऐरा गेरा नत्थू खेरा" तो है नहीं । उसकी पहलवानी के झंडे तो पहले से ही गड़े हुए थे । गांव वालों ने ही उसकी जय जयकार करके उसे अंतरराष्ट्रीय पहलवान घोषित कर दिया था । रही सही कसर खैरातियों की गैंग ने पूरी कर दी थी । कुछ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष, बुद्धिजीवी, लिबरल्स और भांडों ने उसे सिर पर उठाकर बैठा रखा था । वह "भांडवुड" की आंखों का तारा था । सेकुलर्स का दुलारा था और जेहादियों का प्यारा था । उसने "सत्यमेव जयते" के नाम पर गांव वालों की परंपराओं , मान्यताओं और रहन सहन के तरीकों पर तरह तरह के आक्रमण किये थे । पर गांव वाले ठहरे भोले भाले । उसके कुत्सित इरादों को कभी भांप नहीं पाए और उसके आक्रमणों पर भी तालियां बजाते रहे । उसे बढावा देते रहे ।
अचानक एक दिन गांव का सरपंच बदल गया । यह घटना "भांड श्री" को रास नहीं आई और उसने मुनादी करा दी कि उसकी "लुगाई" को अब इस गांव में डर लगने लगा है । हालांकि उसकी बिरादरी द्वारा किये गये आतंकवादी हमलों पर उसे और उसकी लुगाई को कभी डर नहीं लगा मगर सरपंच बदलते ही उसे डर लगने लगा था । लोगों को भी बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना बड़ा पहलवान होकर भी डरता है ?
हद तो तब हुई जब उसने गांव के भोले बाबा के मंदिर पर सवाल खड़े कर दिये । पूजा पाठ को मलेरिया कह दिया । गांव में होने वाली राम लीला में शिवजी बने एक कलाकार का खूब मखौल उड़ाया । पर गांव वाले तब भोंदू बनकर उसके इस कृत्य पर ताली बजा बजाकर हंसने लगे । पेट पकड़ कर हंसने लगे । इस अनुपम दृश्य को देखकर "भांड श्री" की आंखें आश्चर्य से फैल गईं । ये कैसे गांव वाले थे जो अपने ही भगवानों का अनादर करने पर भी "वाह वाह" कर रहे थे । अपने धर्म, संस्कृति पर हमला होने पर भी हमलावर का गुणगान कर रहे थे । यह सब देखकर भांड श्री को आनंद आ गया । वह और जोर से हमला करने लगा । वह मालामाल होने लगा और खुद को देश से भी बड़ा समझने लगा ।
पर , हर एक चीज की सीमा होती है । गांव वाले कब तक अपमान सहते ? कुछ नौजवान लड़कों ने अपने बुजुर्गों का ध्यान पहलवान की इन "हरकतों" की ओर आकृष्ट किया तो गांव वालों को अहसास हुआ कि यह "भांड श्री" तो उनके साथ खेला कर गया । पर अब क्या हो सकता है ? अपने अपमान के लिए "भांड श्री" से ज्यादा तो गांव वाले जिम्मेदार थे । उस भांड को "भांड श्री" किसने बनाया ? गांव वालों ने और किसने ? अगर वे उसके "दंगल" को नहीं देखते , पैसा खर्च नहीं करते , तालियां बजाकर उसे सिर आंखों पर नहीं बैठाते तो इस भांड को कौन जानता ? जब गलती गांव वालों ने की है तो दंड भी उन्हीं को भोगना पड़ रहा है ।
मगर इस बार गांव की फिजां बदली बदली सी लग रही थी । गांव में अंदर ही अंदर सुगबुगाहट हो रही थी । गांव के कुछ नौजवान जोशीले लड़कों ने गांव में मुनादी करा दी कि इस भांड श्री और भांडनी की "नूरा कुश्ती" का सामूहिक बहिष्कार करेंगे । इसकी भनक भांड श्री को लग चुकी थी मगर उसे गांव वालों की मूर्खता पर पूरा विश्वास था । वह जानता था कि गांव वाले इतने मूर्ख हैं कि गांव के दुश्मन गांव के सरपंच से उसके मिलने से भी गांव में कोई भूचाल नहीं आया था तो अब क्या हो जाएगा ? हमेशा की तरह लोग उसकी कुश्ती देखने पैसा, समय बर्बाद करके भी आएंगे । उसके विश्वास करने के बहुत सारे कारण भी थे जो एकदम सही थे ।
उधर भांडनी का आलम कुछ अलग ही था । वह तो घमंड में इतनी चूर थी कि अपने आपको क्वीन विक्टोरिया से भी महान समझ रही थी । उसे विश्वास था कि लोग उसकी कुश्ती देखने आएंगे ही आएंगे । उनके पास कोई और विकल्प ही नहीं है । एक बार एक खैराती पत्लकार ने उससे पूछा कि लोग "नेपोटिज्म" पर सवाल कर रहे हैं तो पता है यह भांडनी क्या बोली ? "जिसे हमारी कुश्ती देखनी है वो देखे । हम किसी को जबरदस्ती थोड़े ही कर रहे हैं ? मत देखो" । भोले भाले गांव वालों ने इसे दिल पर ले लिया और इस बार इस "नूरा कुश्ती" प्रतियोगिता का बहिष्कार करने का फैसला कर लिया ।
जब भांड श्री को पता चला कि गांव वाले उसकी कुश्ती प्रतियोगिता का बहिष्कार कर रहे हैं तो वह थोड़ा सा विचलित हो गया । आखिर उसके 180 करोड़ रुपए "दांव" पर लगे हुए थे । और सबसे बड़ी बात यह थी कि उसकी "ब्रांड वैल्यू" खत्म होने को थी । उसकी नींद उड़ गई थी । उसके शुभचिंतकों ने उसे सलाह दी कि वह यह दर्शाये कि उसे इस गांव से बहुत प्रेम है । गांव वाले तो भोले भाले हैं इसलिए झांसे में आ जाएंगे । भांड श्री ने खैरातियों के सामने कहा कि वह भी इस गांव से बहुत प्यार करता है । खैरातियों ने उसके "अद्भुत प्रेम" का खूब ढिंढोरा पीटा मगर गांव वाले टस से मस नहीं हुए ।
अब भांड श्री भांडनी से लड़ पड़ा । कहा "यह सब तेरे कारण हुआ है । अगर तू यह नहीं कहती कि हमारी कुश्ती मत देखो , तो ऐसा नहीं होता । अब तुझे कहना होगा कि हमारी कुश्ती देखो । यह हम दोनों के लिए बहुत जरूरी है । हमारी ब्रांड वैल्यू अगर खत्म हो गई तो हम कंगाल हो जाएंगे और हमारा "भांडवुड" खत्म हो जायेगा । समूचे भांडवुड ने भांडनी पर दबाव बनाया तो वह घमंडी भांडनी थूक कर चाटने को मजबूर हो गई ।
पर दाल इससे भी नहीं गल रही थी । तो फिर सामने लाया गया सदी के सबसे बड़े भांड को जिसे सब लोग "महा भांड" कहते हैं । कहते हैं कि वह अपने एक कार्यक्रम में लोगों को "करोड़पति" बना देता है । जनता इस कार्यक्रम की दीवानी है । तो इस कार्यक्रम में महा भांड ने भांड श्री को बतौर मुख्य अतिथि बुला लिया और उस "नूरा कुश्ती" प्रतियोगिता का खूब प्रचार प्रसार किया । मगर , इसका भी कोई खास असर नहीं हुआ । गांव वाले इस कुश्ती प्रतियोगिता से दूर ही रहे ।
अब एक और दांव आजमाया गया । गांव वाले अपने झंडे से बहुत प्यार करते हैं । हाथों में तिरंगा लहराना बड़े फक्र की बात है । भांड श्री तो उस्ताद था ही । उसके दिमाग ने तुरंत काम किया और अपने घर पर तिरंगा झंडा फहरा दिया । उसके साथ एक सेल्फी ली और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी । खैराती उसके झंडा प्रेम पर प्रशस्ति गान करने लगे । मगर गांव वाले तो इस बार कमर कस कर बैठे हुए हैं । पिघलने वाले नहीं हैं ।
पूरे गांव में "आजादी का जश्न" मन रहा है । गांव की सभ्यता , संस्कृति जो इन भांडों के पैरों तले कुचली जा रही थी , अब अपने पैरों पर खड़ी हो गई थी और डटकर मुकाबला करने को तैयार थी । अब भांड श्री, भांडनी और महा भांड जैसे लोगों की दुकानों पर ताले लग चुके थे । भांडवुड में सन्नाटा पसरा पड़ा था और गांव में दीपावली जैसा उल्लास भरा हुआ था । खामोशी इस कदर बोलेगी , किसी को विश्वास नहीं हो रहा था ।
एक खैराती ने किसी गांव वाले से पूछा "तुम तो गांधी के अनुयायी हो । एक गाल पर चांटा पड़ने पर दूसरा गाल आगे कर देते हो फिर तुम ऐसा कैसे कर सकते हो" ?
गांव वाले ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया " हमने अब चांटा खाना बंद कर दिया है साहब । और यह मत भूलो कि गांधी "बहिष्कार" वाला मंत्र भी देकर गये हैं । बस, हमने वही मंत्र अपना लिया है । कोई शक" ?
खैराती देखता ही रह गया ।
श्री हरि
14.8.22
sunanda
11-Feb-2023 06:56 PM
nice
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Hari Shanker Goyal "Hari"
11-Feb-2023 10:39 PM
धन्यवाद जी
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madhura
01-Feb-2023 02:21 PM
osm
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Hari Shanker Goyal "Hari"
11-Feb-2023 10:39 PM
धन्यवाद जी
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
07-Sep-2022 07:37 PM
लाजवाब लाजवाब लाजवाब लाजवाब लाजवाब
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Hari Shanker Goyal "Hari"
11-Feb-2023 10:39 PM
धन्यवाद जी
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